यूरोप में राष्ट्रवाद
बिहार पुलिस नोट्स इन हिंदी /जीके – जीएस /Bihar Police Notes in Hindi /GK – GS 2025

यूरोप में राष्ट्रवाद : उदय और विकास – नोट्स | बिहार पुलिस

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यूरोप में राष्ट्रवाद : उदय और विकास – Bihar Police Notes in Hindi 2025 । Nationalism in Europe: Rise and Development – Bihar Police Notes in Hindi 2025

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यूरोप में राष्ट्रवाद
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महत्वपूर्ण तथ्य (यूरोप में राष्ट्रवाद)

• फ्रांस के दार्शनिक रेनन ने राष्ट्र को एक बड़ी और व्यापक एकता की संज्ञा दी जिसे फ्रांसीसी कलाकार को सारयू ने अपनी कल्पना से चित्रित कर उसका प्रभावकारी बिम्ब प्रस्तुत किया।

• शिक्षित मध्यमवर्ग की प्रभावपूर्ण उपस्थिति और कुलीनों की जीवन शैली का प्रभाव राष्ट्रवाद के विकास में सहायक होते हैं।

• 1789 की क्रांति के बाद राजशाही को समाप्त कर, फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने यूरोप में राष्ट्रवाद की स्थापना की।

• नेपोलियन ने स्वयं के विजित राज्यों में नेपोलियन संहिता लागू कर सामंती विशेषाधिकार समाप्त कर कानून के समक्ष सबको बराबरी का अधिकार दिया, जिस पर तानाशाही के विरुद्ध आवाजें उठी।

• कानून के समक्ष सबको बराबरी, निरंकुशवाद के स्थान पर संविधान और प्रतिनिधि सरकार की स्थापना पर बल, आर्थिक क्षेत्र में मुक्त व्यापार का समर्थन तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता पर बल दिया जाता है।

• मेटरनिक व्यवस्था द्वारा निरंकुशवाद को बढ़ावा और राष्ट्रवाद व संसदीय प्रणाली के विकास को रोकने का प्रयास किया गया। पर, क्रांतियों ने उदारवाद और राष्ट्रवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त किया।

• वहीं रूमानीवादियों ने संस्कृति द्वारा राष्ट्रवाद की भावना का विकास किया।

• ब्रिटेन में राष्ट्रवादियों ने 1707 के ‘ऐक्ट ऑफ यूनियन’ द्वारा यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन का गठन किया।

• ऑस्ट्रिया, जर्मनी, हंगरी और बोहेमिया में 1848 में क्रांतियां हुईं और फ्रांस में द्वितीय गणराज्य की स्थापना हुई।

• ‘यूरोप का मरीज’ कहलाने वाले ऑटोमन साम्राज्य की दुर्बलता का लाभ उठाकर 1832 में कुस्तुनतुनिया की संधि द्वारा स्वतंत्र यूनान राष्ट्र की स्थापना की।

• 1870 में एकीकृत इटली का जन्म मेजिनी, काबूर और गैरीबाल्डी तथा विक्टर इमैनुएल के प्रयासों द्वारा हुआ।

• 1871 में प्रशा के नेतृत्व में बिस्मार्क की (रक्त और तलवार) की नीति द्वारा जर्मनी का एकीकरण हुआ।

• संसाधन के तहत पर्यावरण के वे सारे अवयव आते हैं। जो विद्यमान तकनीक की सहायता से मानव जीवन की आवश्यकतओं को पूर्ण करने की क्षमता रखते हैं।

• तकनीक अथवा प्रौद्योगिकी का विकास मानव की क्षमता और कुशलता पर निर्भर करता है।

• संसाधन होते नहीं, बनते हैं। संसाधन का निर्माता एवं उपभोगकर्ता, दोनों मानव ही है। मानव भी एक संसाधन है।

• मनुष्य के आर्थिक विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धि व उनका सार्थक प्रयोग, दोनों अत्यावश्यक है।

संसाधनों का वर्गीकरण-

1. उपलब्धता के आधार पर प्रकृतिप्रदत्त एवं मानवकृत

2. स्रोत के आधार पर जैविक और अजैविक

3. पुनः प्राप्ति के आधार पर नवीकरणीय एवं अनवीकरणीय

4. स्वामित्व के आधार पर निजी, सामुदायिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय

5. विकास के स्तर के आधार पर संभाव्य, ज्ञात, भंडारित एवं संचित

• प्रकृति द्वारा हमें उपलब्ध कराई गई सभी वस्तुएँ एवं पदार्थ जैसे हवा, जल, भूमि इत्यादि प्रकृतिप्रदत्त संसाधन हैं जबकि भवन, सड़क, रेल लाइन, स्कूल, कॉलेज एवं अन्य संस्थान इत्यादि मानवकृत संसाधन हैं तथा, पेड़, पौधे, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, मानव इत्यादि जैविक संसाधन हैं।

• वातावरण के सभी निर्जीव पदार्थ जैसे खनिज, चट्टान, मिट्टी, नदियाँ, पर्वत, पठार इत्यादि अजैविक संसाधन है।

• *प्रकृति द्वारा स्वतः बननेवाले संसाधन, जैसे सूर्य प्रकाश, हवा, पानी, पेड़-पौधे, जीव-तंतु इत्यादि नवीकरणीय संसाधन हैं।

• एक बार प्रयोग होने पर खत्म हो जानेवाले संसाधन, जैसे कोयला, पेट्रोलियम एवं अन्य खनिज अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं।

• मकान, कृषि, भूमि, कार, मोटरसाइकिल, टेलीफोन, साइकिल इत्यादि निजी संसाधन कहलाते हैं। जबकि चारागाह, मंदिर, खेल का मैदान, तालाब, श्मशन भूमि, बाजार, पंचायत भूमि, विद्यालय भवन, पर्यटन स्थल इत्यादि सामुदायिक संसाधन कहलाते हैं।

• किसी देश के अंदर पाए जानेवाले सभी प्रकार के संसाधन राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं। सागर तट से दूर 19.2 कि०मी० तक का भाग राष्ट्रीय संपत्ति कहलाता है।

• 19.2 कि०मी० के बाहर का सागरीय क्षेत्र एवं उसमें पाया जानेवाले संसाधन अंतरराष्ट्रीय संसाधन कहलाती हैं।

• वैसे संसाधनों का उपयोग जो वर्तमान में किसी कारण से नहीं हो रहे हों परंतु जिनके उपयोग होने की संभावना हो, संभाव्य संसाधन कहलाते हैं। जैसे- भारत में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा इत्यादि।

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